Gangaram Patel & Bulakhi Nai ki manoranjak kahaniyan In Hindi | गंगा राम पटेल और बुलाखी नाई की अद्भुत हिंदी कहानियां।
वचन भंग
काशी यात्रा को पूरा कर गंगाराम पटेल और बुलाकी नाई वापस घर की ओर लौट पड़े रास्ते में उन्हें एक नगर दिखाई दिया क्योंकि शाम ढलने लगी थी इसलिए उन दोनों ने उस रात वहां रुकने का मन बना लिया।
वापस लौटते हुए बुलाकी राम ने एक बगीचे के अंदर ऐसा खास तालाब देखा जिसके घाट मानो सोने के थे और उसके अंदर तैरती हुई मछलियां चांदी की नजर आ रही थी एक बार फिर बुलाकी राम की उत्सुकता जाग गई थी। मौका देखकर उसने पटेल जी के उस तालाब का भेद जानने की इच्छा जता दी।
वचन भंग |
बुलाकी राम की उत्सुकता को गंगाराम पटेल और अधिक ना रोक सके और उस तालाब का रहस्य खोलते हुए।
गंगाराम पटेल ने कहानी सुनना शुरू किया -
आज से कुछ सालों पहले इस नगर का नाम भूपुर हुआ करता था। यहां वीरसेन नाम का एक क्षत्रिय युवक रहता था। उसे शिकार करना बहुत पसंद था अक्सर वह अकेला ही जंगल में जाकर जंगली जानवरों का शिकार किया करता था।
एक बार शिकार की खोज में वीरसेन किसी नए जंगल में प्रवेश कर गया जहां वह पहले कभी नहीं गया था। उसके लिए वह पूरा जंगल एक भूल भुलैया की तरह था ऐसी हालत में उसे कोई शिकार तो मिला नहीं दोपहर होते-होते वीरसेन भी थक कर चूर हो गया था। भूख प्यास ने भी उसकी हालत खराब कर रखी थी।
सुबह से शिकार की तलाश में घूमता हुआ वीरसेन भूख से त्रस्त हो चुका था इंसान एक बार किसी तरह भूख को रोक भी ले लेकिन प्यास का क्या करें। वीरसेन अपनी प्यास बुझाने पूरे जंगल में यूं ही भटकता रहा लेकिन उसे पानी पीने का कोई भी जरिया नहीं मिला। पानी ना मिलने पर उसकी हालत बिगड़ने लगी और वह जल्दी ही चक्कर खाकर बेहोश हो गया।
इत्तेफाक से उसी वक्त उस जंगल से एक देवकन्या गुजर रही थी जो अक्सर वहां वन विहार के लिए आया करती थी उसने जब जमीन पर वीरसेन को पड़ा देखा तो मैं खुद को रोक न सकी और नीचे आकर वीरसेन का निरीक्षण करने लगी।
वीरसेन एक खूबसूरत तंदुरुस्त और हट्टा कट्टा नौजवान था देवकन्या उसका रूप देख कर उस पर मोहित हो गई उसने वीरसेन को अपनी बांहों में उठाया और उसे एक नदी के किनारे ले गई वीर सिंह पर कुछ पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी।
जल्दी ही वीरसेन की बेहोशी भी टूट गई और वह उठ कर बैठ गया उसकी नजर जब उस देव कन्या के ऊपर पड़ी तो अभी उसके रूप पर मोहित हो गया।
और बोल पड़ा- हे सुंदरी..! तुम कौन हो इस निर्जन वन में तुमने मेरी रक्षा की है?
देवकन्या बोली- मैं एक देवगन ने हूं मैं वन विहार के लिए घर से निकली थी जंगल में तुम मुझे मूर्छित पड़े दिखाई दिए तो मैं तुम्हें किस नदी के किनारे पर ले आई पहले अच्छी तरह पानी पीकर तुम अपनी प्यास बुझा लो उसके बाद हम आगे बात करते हैं।
वीरसेन प्यासा था उसने जी भर कर नदी से पानी पिया और अपनी प्यास इन बुझाई फिर उसने देवकन्या से कहा है सुंदरी मैं तुम्हारे रूप पर मोहित हो गया हूं आज से पहले मैंने तुम जैसी सुंदर और कोई नहीं देखी क्या तुम मुझसे विवाह करना पसंद करोगी।
वीर सिंह की बातें सुनकर देवकन्या बोली- हे युवक..! मोहित तो मैं भी तुम्हारे रूप पर हो गई लेकिन मैं सिर्फ एक ही शब्द पर तुम से विवाह कर सकती हूं।
वीर सिंह ने उत्सुकता से पूछा- कौन सी शर्त है तुम्हारी?
देवकन्या बोली मेरी शर्त यह है कि विवाह के बाद तुम मुझ पर ऐसी कोई भी रोक तो नहीं करोगे जो मेरी स्वतंत्रता पर रोक लगाएं तुम मुझे मुझसे यह भी नहीं पूछोगे कि मैं कहां गई थी या क्यों गई थी और किसके पास गई थी हां यह बात अलग होगी कि मैं अपनी इच्छा से ही तुम्हें सब कुछ बता दूं लेकिन तुम कभी भी इन बातों को लेकर मुझ पर किसी भी तरह का कोई दबाव नहीं बनाओगे। यदि तुम्हें यह सारी शर्तें मंजूर है तो मैं तुम से विवाह करने के लिए तैयार हूं।
वीरसेन उस देवकन्या पर पूरी तरह मोहित हो चुका था और उसने उसकी सारी शर्तें भी मांगी थी तब उन दोनों ने जंगल में ही 1 देवता को साक्षी मानकर गांधर्व विवाह कर लिया वीरसेन उस दिन कन्या को अपनी पत्नी बनाकर अपने घर ले आया कुछ दिन दोनों बहुत आनंद पूर्वक रहे फिर 1 दिन वीरसेन ने अपनी पत्नी से कहा- प्रिये अब मैं काम की तलाश में यहां के राजा के पास जाना चाहता हूं ताकि हमारे खाने पीने का खर्चा अच्छी तरह चलता रहे।
वीरसेन हट्टा कट्टा और तंदुरुस्त नौजवान था जब वह राजा के पास नौकरी मांगने गया तो राजा ने तुरंत ही उसे नौकरी पर रख लिया और अपना अंगरक्षक बना दिया इस तरह से दोनों के दिन आराम से कटने लगे।
एक दिन राजा शिकार के लिए जंगल में गया वीरसेन को उसके अंगरक्षक होने की वजह से उसके साथ जंगल में जाना पड़ा शिकार के दौरान एक सिंह ने उसके बाएं हाथ पर एक झपट्टा मार दिया था जिसकी वजह से वीर सिंह की एक उंगली घायल हो गई थी उसमें से बुरी तरह खून बह रहा था वीर सिंह ने किसी तरह अपनी उंगली पर पट्टी बांधकर उंगली से बहते खून को रोक लिया लेकिन उंगली का दर्द था कि रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
घर लौटकर उसने अपनी पत्नी को यह सारी बात बताई और फिर भोजन कर बिस्तर पर लेट गया।
लगभग आदि रात का समय हुआ तो भीमसेन की उंगली में एकाएक बहुत जोरों का दर्द उठ गया। दर्द के कारण उसकी नींद टूट गई और तभी उसने ऐसा नजारा देखा कि वह अपना दर्द भी भूल बैठा।
उसने देखा कि दूसरे बिस्तर पर सोई हुई उसकी पत्नी एकाएक उठ कर अपने पति को गहरी नींद में देखती है और आराम की सांस लेते हुए दूसरे कमरे में चली जाती है वीर से अपनी सांसे रोक कर सोने का नाटक जारी रखता है तभी कुछ देर बाद उसकी पत्नी सोलह सिंगार करके घर से बाहर जाती है तो वीरसेन जी दबे पाव उसका पीछा करने लगता है।
उसकी पत्नी एक तालाब के किनारे हैं जहां पहले से ही एक काले रंग का पहाड़ जैसा मजबूत आदमी उसका इंतजार कर रहा था जैसे ही वीरसेन की पत्नी वहां पहुंची उसने बिना सोचे समझे उसे अपने गले से लगा लिया और चुम्बन करने लगा।
यह सब देख कर वीरसेन अपना दिया हुआ वचन भूल बैठा और क्रोध में आकर तलवार से एक ही बार में उस आदमी का सर धड़ से अलग कर देता है। और तलवार घुमाते हुए दूसरे वार से अपनी पत्नी का फिर भी काट देता है।
दोनों के कटे हुए से तालाब में जा गिरते हैं और तभी तालाब में एक अजीब सा भूकंप आ जाता है तालाब के पानी से ऊंची ऊंची तरंगें उठने लगती है। तालाब का पानी इस तरह खौलता नजर आने लगता है जैसे भट्टी पर खौल रहा हो।
तालाब की सभी मछलियां और दूसरे जलचर मर मर कर ऊपर आकर तैरने लगे कुछ देर बाद जब तालाब का पानी शांत हुआ तो एक दूसरा नजारा देखने मिला कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि तालाब की सारी सीढ़ियां सोने की नजर आने लगे और तालाब के पानी में तैर रही सारी मछलियां चांदी की बनी हुई दिखाई देने लगी।
यह सारी चमत्कारी घटना देखकर वीरसेन के पैर ठंडे पड़ गए और वह घबराकर भाग खड़ा हुआ वीरसेन इतना डर गया था कि रातो रात उसने वह नगर और प्रदेश दोनों ही छोड़ दिया है और कहीं दूर जाकर रहने लगा।
आज तुम जो चमत्कारी सोने का तालाब और तैरती हुई चांदी कि मछलियां देख कर आए हो वह वहीं तालाब है।
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